जल प्रदूषण
हमारी पृथ्वी के भाग पर जल पाया जाता है। पृथ्वी पर पाया जाने वाला जल शुद्ध है क्योंकि शुद्ध जल में दो भाग हाइड्रोजन तथा एक भाग ऑक्सीजन होती है। भौतिक रासायनिक तथा जैवीय विशेषताओं में हानिकारक प्रभाव उत्पन करने वाले परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते हैं।
जल प्रदूषण के कारण
जल प्रदूषण के मुख्य रूप से दो कारण है-
- प्राकृतिक कारण-प्राकृतिक रूप से जल का प्रदूषण धीमी गति से होता है। प्राकृतिक स्रोतों का जल बहकर एकत्रित होता है। यदि उस स्थान पर खनिज की मात्रा अधिक है तो जल में घुलकर जल को दूषित कर देगा। इसके अति भूस्खलन, मृदा व ज्वालामुखी क्रिया के द्वारा भी जल प्रदूषण होता है।
- मानवीय कारण-मानव द्वारा जल प्रदूषण निम्न प्रकार होता है-
- घरों का गन्दा पानी जलीय स्रोतों से मिला देने पर जल प्रदूषण होता है।
- कपड़े धोने में साबुन के प्रयोग आदि से निकला गन्दा पानी जल स्रोतों से मिलकर जल को दूषित करता है।
- नगरीय क्षेत्रों का सीवेज जल भारी मात्रा में कूड़ा-करकट के साथ जल स्रोतों से मिलकर उसे प्रदूषित करता है।
- कारखानों से निकलने वाला गन्दा जल भी जल स्रोतों से मिलकर उसे प्रदूषित करता है।
- रेडियोएक्टिव पदार्थ भी जल को दूषित करते हैं।
- तट से दूर गहरे महासागरों में भी तेल वाहक जहाजों से तेल रिसने व बिखरने से जल प्रदूषण होता है।
जल प्रदूषण का जीवों पर प्रभाव-दूषित जल में ऑक्सीजन की कमी तथा हाइड्रोजन गैस की वृद्धि हो जाती है। पानी में ऑक्सीजन की कमी से अनेक जीव-जन्तु मर जाते हैं या उनका पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता है। किनारे के
जल के दूषित होने पर अनेक जीव जन्तु समाप्त होते जा रहे हैं क्योंकि ये उप जल पर ही आश्रित होते हैं।
जल प्रदूषण का वनस्पतियों पर प्रभाव-दूषित जल में अनेक प्रकार के विषैले तत्त्व पाये जाते हैं जो दूषित मल के रूप में बने रहते हैं तथा पौधों में कदक तथा शैवाल के रूप में विर्षले बैक्टीरिया का विकास करते हैं और वे पौष वनस्पतियों के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं।
दूषित जल के कारण पौधों को भोजन प्रक्रिया (Photosynthesis) में भी बाधा उत्पन्न होती है जिससे तन्तुओं के छिद्र बन्द हो जाते हैं और पौधों की श्वसन क्रिया प्रभावित होती है। यदि दूषित जल तली में एकत्रित हो जाता है तो पौधों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं जिसके कारण उनका पूर्ण विकास नहीं हो पाता।
तापीय प्रदूषण
कारखानों तथा ताप घरों से जब गर्म जल को बिना ठण्डा किए ही नदिवं तथा तालाबों में छोड़ दिया जाता है, तो जल में तापीय प्रदूषण होता है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अपशिष्ट व परमाणु शस्त्र उत्पादक कारखानों से कैंसर, जन्मजात विकार तथा अकाल प्रसव जैसी बीमारियाँ होती हैं।
मृदा व जल प्रदूषण आपस में संबंधित है। मलबे का ढेर विशेषकर काँच, हानिकारक रसायन, औद्योगिक बहाव, पैकिंग, लवण तथा कूड़ा-करकट मृदा को अनुपजाऊ बनाता है। व्य जाल के साथ ये प्रदूषक जमीन से रिसते हुए भूमिगत जल तक पहुँचकर उने थे प्रदूषित कर देते हैं।
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