Food Security Policy and Objectives in India
खाद्य सुरक्षा :- भोजन एक आधारभूत मानवीय आवश्यकता है और देश के प्रत्यक कारिक को ऐसा भोजन मिलना चाहिए जो न्यूनतम पोषण स्तर प्रदान करे। यदि देश की जनसंख्या के किसी भाग को यह उपलब्ध नहीं होता तो वह खण्ड खाद्य सुरक्षा से वंचित है। हमारे देश के कुछ प्रदेशों, विशेषतः आर्थिक दृष्टि से कम बिकसित राज्यों, जहाँ अधिक निर्धनता व्याप्त है, वहाँ उन लोगों का अनुपात अधिक है जिन्हें खाद्य सुरक्षा प्राप्त नहीं है। देश के सुदूर क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं और अनिश्चित खाद्य आपूर्ति की अधिक संभावना होती है। Food Security Policy and Objectives in India
समाज के सभी वर्गों को खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए हमारी सरकार ने सावधानीपूर्वक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा प्रणाली की रचना की है। इसके दो घटक १(क) बफर स्टॉक (ख) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.)। जैसा कि आप जानते हैं सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक कार्यक्रम है जो ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में खाद्य पदार्थ और अन्य आवश्यक वस्तुएँ सस्ती दरों पर उपलब्ध कराती है।
भारत की खाद्य सुरक्षा नीति का प्राथमिक उद्देश्य सामान्य लोगों को खरीद सकने योग्य कीमतों पर खाद्यात्रों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। इससे निर्धन भोजन प्राप्त करने में समर्थ हुए हैं। इस नीति का केन्द्र कृषि उत्पादन में वृद्धि और भंडारों को बनाए रखने के लिए चावल और गेहूं की अधिक प्राप्ति के लिए समर्थन मूल्य को निर्धारित करना है। Food Security Policy and Objectives in India
खाद्यात्रों की अधिक शाप्ति और भंडारण की व्यवस्था फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफ सी आई.) करती है जबकि इसके वितरण को सार्वजनिक वितरण प्रणाली सुनिश्चित करती है।
भारतीय खाद्य निगम (एफ. सी. आई.) सरकार द्वारा पोषित न्यूनतम समर्थन पर किसानों से खाद्यान्त्र प्राप्त करती है। सरकार उर्वरक ऊर्जा और जल जैसे कृषि निवेशों पर सहायिकी उपलब्ध कराती थी। अब इन सहायिकियों का बात उठाना असहनीय हो रहा है और इससे उन दुर्लभ निवेशों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग भी हुआ है। Food Security Policy and Objectives in India
जल और उर्वरकों के अधिक और अविवेकपूर्ण प्रयोग से अलाकांतता, लवणता और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी की समस्याएँ पैदा हो गई हैं। ऊँचा न्यूनतम समर्थन मूल्य, निवेशों में सहायिकों और एफ. सी. आई. द्वारा शर्तिया खरीद ने शस्य प्रारूप को बिगाड़ दिया है। जो न्यूनतम समर्थन मूल्य उन्हें मिलता है उसके लिए गेहूँ और चावल की अधिक फसलें उगाई जा रही है। पंजाब और हरियाणा इसके अग्रणी उदाहरण हैं।
जैसा कि आप जानते हैं कि उपभोक्ताओं को दो वर्गों में बाँट दिया गया है-गरीबी रेखा से नीचे और गरीबी रेखा से ऊपर और प्रत्येक वर्ग के लिए कीमतें अलग-अलग हैं। परंतु यह वर्गीकरण पूर्ण नहीं है क्योंकि इससे अनेक हकदार गरीब लोग बी पी. एल. वर्ग से बाहर हो गए हैं। कई ए.पी.एल. श्रेणी के लोग एक फसल खराब होने से ही बी पी.एल. श्रेणी में आ जाते हैं और प्रशासकीय दृष्टि से ऐसे परिवर्तनों को समायोजित करना कठिन हो जाता है। Food Security Policy and Objectives in India
यदि सरकार उपयुक्त कृषि अवसंरचना ऋणों की सुविधा उपलब्ध कराती है और नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देती है तो प्रत्येक जिला और ब्लॉक को खाद्यान्नों के पैदावार में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। केवल गेहूँ और चावल पर ध्यान देने की अपेक्षा उस क्षेत्र में ठगने वाली खाद्य फसलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिसमें वृद्धि की बेहतर संभावनाएँ हों।
सिंचाई सुविधाओं और विद्युत उपलब्ध करवाने जैसे आवश्यक अवसंरचना को बढ़ावा देने से कृषि में निजी पूँजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। सतत पोषणीय आधार पर खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि, और अनाजों के व्यापार को बंधन से मुक्ति से भारी मात्रा में रोजगार पैदा होंगे और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी भी घटेगी। Food Security Policy and Objectives in India
धीरे-धीरे खाद्य फसलों की कृषि का स्थान फलों, सब्जियों, तिलहनों और औद्योगिक फसलों की कृषि लेती जा रही है। इससे अनाजों और दालों के अंतर्गत निवल बोया गया क्षेत्र कम होता जा रहा है। भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ घटता खाद्य उत्पादन देश की भविष्य की खाद्य सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लगाता है। भूमि के आवासन (Housing) इत्यादि जैसे गैर-कृषि भू-उपयोगों और कृषि के बीच बढ़ती भूमि की प्रतिस्पर्धा के कारण बोए गए निवल क्षेत्र में कमी आई है।
भूमि की उत्पादकता ने घटती प्रवृत्ति दर्शानी आरम्भ कर दी है। उर्वरक, पीड़कनाशी और कीटनाशी, जिन्होंने कभी नाटकीय परिणाम प्रस्तुत किए थे, को अब मिट्टी के निम्नीकरण का दोषी माना जा रहा है। जल की कालिक कमी के कारण सिंचित क्षेत्र में कमी आई है। असक्षम जल प्रबंधन से जलाक्रांतता और लवणता की समस्याएँ खड़ी हो गई हैं। Food Security Policy and Objectives in India
इसका एक मुख्य कारण भूमि निम्नीकरण है। किसानों को मुफ्त बिजली उपलब्ध करवाने के कारण जल-सघन फसलें उगाने के लिए कुछ क्षेत्र के किसानों को सिंचाई के लिए अधिकाधिक भूमिगत जल को पंपों के द्वारा निकालने का प्रोत्साहन मिला।
कम वर्षा वाले क्षेत्रों जैसे पंजाब में चावल तथा महाराष्ट्र में गन्ने की खेती इसके उदाहरण हैं। इससे भूमिगत जलभृत् (Aquifer) में जल का भंडारण कम होता जा रहा है। परिणामस्वरूप कई कुएँ और नलकूप सूख गए हैं। इससे सीमांत और छोटे किसान कृषि छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। Food Security Policy and Objectives in India
बड़े किसानों को उनके गहरे नलकूपों से अभी भी पानी उपलब्ध है परंतु बहुत से दूसरे किसान जल की कमी की समस्या का सामना कर रहे हैं। अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ और बाजार के अभाव में भी किसान हतोत्साहित होते हैं।
इस प्रकार किसान उत्पादन और बाजार की अनियमितता से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। उनको दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है। एक तो उन्हें कृषि लागतों जैसे उच्च पैदावार वाले बीजों, उर्वरकों इत्यादि के लिए अधिक दाम देने पड़ते हैं और दूसरी ओर खरीद मूल्य बढ़ाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।Food Security Policy and Objectives in India
किसानों की पैदावार एक साथ मंडी में पहुँचती है जिसके कारण खरीद मूल्य कम मिलता है परंतु उन्हें मजबूरी में अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं। इसलिए, छोटे किसानों की सुरक्षा बिना खाद्य सुरक्षा के संभव नहीं है।
Food Security Policy and Objectives in India
तालिका – भारत खाधान उत्पादन (मिलियन टन)
खाद्यान | 2016-17 | 2017-18 | 2018-19 | 2019-20 | 2020-21 |
चावल | 109.7 | 112.8 | 116.5 | 118.9 | 122.3 |
गेहूँ | 98.5 | 99.9 | 103.6 | 107.9 | 109.5 |
मक्का | 25.9 | 28.8 | 27.7 | 28.8 | 31.5 |
बाजरा | 9.7 | 9.2 | 8.7 | 10.4 | 10.9 |
दालें | 23.1 | 25.4 | 22.1 | 23.0 | 25.7 |
कुल | 275.1 | 285.0 | 285.2 | 297.5 | 308 |
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