उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन 1944 में “निजाई बोल कृषक आंदोलन”भी एक प्रमुख आंदोलन के रूप में जाना जाता |
निजाई बोल कृषक आंदोलन बस्ती
उत्तर प्रदेश के कृषक आंदोलन में एक प्रमुख आंदोलन बस्ती जिले का 1936 का निजाई बोल आंदोलन है, उत्तर प्रदेश में पहली बार कृषक मजदूरों ने अपने मालिकों के खिलाफ भू स्वामित्व और किसान आगजनी, लूटमार और हत्या की शिकार हुए थे|बस्ती का निजाई बोल कृषक आंदोलन वर्षों से उत्तर प्रदेश के शोषित किसानों का आक्रोश था, जो अपने सब्र को तोड़ चुका था|
सन 1936 में प्रारंभ हुए इस आंदोलन का स्वरूप सामान था लेकिन 1937 बस्ती के जमीदारों द्वारा अहिर, कुर्मी, चमार ,जातियों के किसानों को बेकार के नाम पर प्रताड़ित करने और आधी मजदूरी देने के कारण य हिंसक हो गया|खेतिहर मजदूरों के विरोध करने पर जमीदारों ने शारीरिक यातना से लेकर किस कृषकों को झोपड़ियां जलाना और महिलाओं को अपमानित करना प्रारंभ कर दिया जिससे आंदोलन काफी तीव्र और हिंसक हो गया|उत्तर प्रदेश के निजाई बोल कृषक आंदोलन मैं पहली बार सामान्य कृषकों की चेतना भी बेकार और मालिकाना के नाम पर हो रहे| निजाई बोल कृषक आंदोलन बस्ती
हो रहे आर्थिक शोषण खेतिहर श्रमिक महिलाओं पर बलात्कार सवार मालिकों द्वारा निम्न जात को स्त्रियों को रखैल बनाने की रंपरा आज के सम्मान जागृत हुई|इस आंदोलन में किस सको को राजनीतिक सहयोग भी मिला|निजाई बोल कृषक आंदोलन धीरे-धीरे उग्र रूप धारण करने लगा. निजाई बोल कृषक आंदोलन बस्ती
जिसके फल सूप 1939 में भूख स्वामियों और बटाई मजदूरों में लगान की दर को लेकर और बट आई मजदूरों मैं लगान की दर को लेकर खेतों में ही लाठी – लाठी बलम चलने लगे जिसमें पहली बार एक भू स्वामी की हत्या हुई | इस झगड़े में 50 से अधिक व्यक्ति घायल हुए थे उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में प्रारंभ हुए निजाई बोल कृषक आंदोलन ने बाद में जब उग्र रूप धारण कर लिया तो जमीदारों और सवर्ण जातियों द्वारा आंदोलन को रोकने और किसानों पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए गांव के कुओं और तालाबों में पानी लेने से किसानों को रोका जाने लगा|
निजाई बोल कृषक आंदोलन की विवेचना करते हुए प्रोफेसर राजेंद्र सिंह लिखते हैं कि मालिकाना लगान , बेकार हथिया (जमीदार को हाथी खरीदने के लिए पैसा जुटाना), ओर भैया हूं अर्थात जमीदारों की पुत्री के विवाह का प्रबंध जैसे नए करो कोना चुका सकने के कारण किसानों की फसल नष्ट होने लगी|इसलिए बस्ती के सभी किसानों ने योजनाबद्ध रूप से हिंसक आंदोलन किया इसमें किसानों ने अपने साथियों को आम के बाग में छुपकर प्रतिबंधित तालाब से पानी लेना शुरू किया| निजाई बोल कृषक आंदोलन बस्ती
इस पर जमीदारों और उनके साथियों ने किसानों को रोकने का प्रयास किया तो चतुराई का प्रदर्शन करते हुए किसान मालिकों के हाथ जोड़कर पैर छूने लगे यह वास्तव में माफीनामा नहीं बल्कि यह संकेत था और तभी आम के बाग में छिपे अन्य किसानों ने हमला कर दिया|इस समय किसानों ने मालिक के पैर कस कर पकड़ लिया ताकि विभाग ना सके|अचानक हुए इस हमले में मालिक और उनके बहुत से समर्थक मारे गए|मालिक की लाश को उनकी हवेली के फाटक पर फेंककर कृषकों ने धमकी दी कि अगर आप किसी ने हथियाही,बियाही या मालिकाना – हक मांगा तो उसका भी यही हाल होगा|
करो कि अतिरिक्त जमीदार वर्ग द्वारा किए जा रहे धार्मिक शोषण के कारण क्या आंदोलन भी उग्र हुआ”¹ उदाहरण के लिए 1944 में बस्ती का देवी देवता के नाम बुलवा था और ऐसे ना करने पर उस पर सूअर का मल मूत्र फेंकता था|इस्लाम में सूअर के मांस का धार्मिक निषेध है, बटाईदार ने मानसिक पीड़ा से परेशान होकर इसका विरोध किया|मुस्लिम जमीदारों द्वारा भी कुछ इसी तरह हिंदू गरीब किसानों को प्रेरित किया जाता था|
हिंदू गरीब किसान अपनी फसल नहीं काट सकते थे, सब्जी दूध नहीं भेज सकते थे|इस तरह धार्मिक रूप से प्रताड़ित होने पर सभी किसानों ने जमीदार को घेर कर और फरसे से मार-मार कर उनकी लाश के टुकड़े टुकड़े कर दिए|इस तरह निजाई बोल आंदोलन मैं अनेक जमीदारों और कृषकों की हत्याएं भी हुई|यह सन 1936 से 1953 तक चला| निजाई बोल कृषक आंदोलन बस्ती
उत्तर प्रदेश में मिठाई बोल आंदोलन के पश्चात सन 1970 में बस्ती में पुनः एक नए प्रकार का कृषक आंदोलन प्रारंभ हुआ 1970 में बस्ती मैं कर सकूं ने “भू में हथियार आंदोलन”प्रारंभ किया|निजाई बोल कृषक आंदोलन जहां शिक्षकों किस शोषण के खिलाफ लड़ाई को बताता है वही 1970 का भीम हथियार आंदोलन का उद्देश्य किसानों द्वारा आर्थिक लाभ और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना था|
धूम हथियार आंदोलन द्वारा बस्ती के मुस्लिम और आस्पर्श हिंदू किसानों ने कथित होकर सवार हिंदुओं की भूमि को हथियाने के लिए आंदोलन किया इस आंदोलन का आरंभ बस्ती जिले से हुआ लेकिन इसका नेतृत्व बाहर के लोगों का था|धार्मिक संगठनों और शासन के हस्तक्षेप के कारण यह आंदोलन दवा देने के कारण पूर्णता सफल हो गया बस्ती के बाहर भी इस आंदोलन की शुरुआत हुई लेकिन यह कहीं भी सफल नहीं हो सका|
उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह तथा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैतने भी 80 के दशक में विशेषकर गन्ने के समर्थन मूल्य और बिजली बिल माफी को लेकर उग्र किसान आंदोलन किए चौधरी महेंद्र सिंह टिकेट ने तो मेरठ और बागपत के हजारों किसानों का नई दिल्ली के वार्ड क्लब में स्थाई रूप से धरना प्रदर्शन करके केवल राज्य सरकार को ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार को भी झुकने के लिए मजबूर किया. निजाई बोल कृषक आंदोलन बस्ती
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